मासूम सा वो बच्चपन कहा गए खेलने के उम्र में,
काम पर चल दिए बस पेट के ख़ातिर,
खुद ब खुद बड़े हो गए न झेले उसने किताबों के बोझ को,
काट दिया अपनी बच्चपन फूट पाथ और रोड पर,
लोगों ने इनकी भूख का फायदा उठाया,
नन्ही सी उम्र में ही उनसे काम करवाया।
हमारे मोहब्बत की कहानी एसी है,
कभी हसाती तो कभी रूलाती है,
यूँ ही नहीं बिखरा पड़ा है मेरी जिंदगी,
" जानेमन " कुछ आपकी मुस्कान की तो
कुछ आपकी यादों की मेहरबानी है।
अधूरे सफर की यादें रूलाती तो बहुत हैं,
पर अब मुझे अपने दिल से बगावत करने की आदत नहीं है।
मासूमियत देख के उसके चेहरे की,
ये दिल थम सा जाता है,
महसूस कर उसको अपने पास,
मेरे रूह को सूकून मिल जाता है,
उसकी एक मुस्कराहत के खातिर ही,
हम जैसा शख्स भी जोकर बन जाता है।
कुछ घटिया लोग हमें जाति,धर्म के नाम पर लड़ा रहे हैं,
और उस दंगे,लडा़ई में हम नेताओं से रुपया लेकर जा रहे हैं
हम तो लडा़ई कर रहे हैं नेता अपना काम निकाल रहे हैं,
हम धर्म-धर्म कह कर लोगो को मार रहे हैं।
जिसको तुम अपना मानती हो,
साथ में जिंदगी बिताना चाहती हो,
जिसके लिए तुम सब कुछ छोड़ आयी हो,
जिंदगी से रिश्ता तोड़ आयी हो,
वह जब किसी और की बाहों में होगा,
" जानेमन " तुम्हें भी दर्द का एहसास होगा,
जब तुम्हें भी किसी से प्यार होगा।
उतरते गए नकाब चेहरों से
जब साँसों की कीमत मिट्टी हो गई।
अर्थी सजने लगी जब,तो मायूसी छाने लगी
ज्ज़बात सभी की सामने आने लगी।
कड़वे बोल बोलते थे जो कभी
आज जब आग लगी तो सबकी जुबान मीठी हो गई।
मरने के बाद सबको
उस सख्स की कीमत समझ में आने लगी।
जिंदा में जो कभी याद न किया उसे
मरने के बाद उसकी याद उसे रुलाने लगी।
जिंदगी चल रही थी मजे के साथ
अचानक एक तूफान आया आंधियों के साथ
सबकी जिंदगी को तहस नहस कर दिया
घर, व्यापार, स्कूल ऑफिस सबको बंद कर दिया
जो छुपी हुई थी दूरियाँ एक व्यक्ति की दूसरे से
Sicial distancing ने वो भी clear कर दिया
दिखावे के नाम पर जो रिश्ता खडे़ थे
कम gathering ने उसे भी बंद कर दिया
किसी के सुख-दुःख में शामिल होना रिवाज है
दिखावे के नाम पर जुडा़ हुआ समाज है
इसीलिए कुदरत ने सबको घर में बंद कर दिया
कोरोना वायरस ने वह काम बखूबी कर दिया
परिवार क्या होता है सबको अच्छे से समझा दिया
Savings है जरुरी इसका ज्ञान करा दिया
फिजूलर्खची थी जो सबको बंद करवा दिया
कोरोना ने जीवन जिने का नया तरीका सीखा दिया।।
किसान आज खडे़ हैं सड़कों पर
बचाने अपनी मिट्टी को
खुद का हक लेने को
खडे़ हैं आज सड़कों पर
उनके फसलों का दाम सरकार कैसे तय करेगी
उनके मेहनत का दाम सरकार कैसे भरेगी
हौसलों को बुलंद कर किसान भी आगे आए हैं
खुद के फसलों का दाम खुद से तय करने को
आज सरकार से टकराये हैं।
मिट्टी हमारे पूर्वजों की
मेहनत हमारी बाजूँओं का
खून पसीने से कमाई- ये हमारी फसल है
उसका दाम हम तय ना करे
इससे बडा़ अभिशाप और क्या है
पर अब हम ये सहन नहीं करेंगे
हमें अपने फसलों का दाम खुद से तय करना है
सरकार को भी अब अपने सामने नतमस्तक करना है।
भलाई हमरी चाहते हो न
तो पहले समझो हमारे दुःख को
कर्जों को हम सहते आए
आत्महत्या हम करते आए
बेदर्द सा मंजर सहते आए
सबकी भूख हम मिटाटे आए
बंजर से बंजर खेतों में हल चलाते हम आए
सूखा-बाढ़ जैसे हलातों को
मिलजुल कर सहे हम किसान
फिर भी हमें इज्जत नहीं मिलती
इससे आगे क्या बताए एक किसान
जय जवान ,जय किसान।।
तुम दुआ हो मेरी।
तुम एक खूबसूरत एहसास हो मेरी।
कभी गुस्सा ,कभी आँसू और कभी खिलखिलाहट से भरी जान हो मेरी ।
खुद ही चिढा़ती हो फिर खुद ही हँसाती भी हो।
मेरे गुस्सा हो जाने पर खुद संमभालती भी हो।
तुम उस खुदा की भेजी खूबसूरत सौगात हो।
जिससे रौशन मेरी कायनात है।
तेरी-मेरी यारी बयाँ कर पाए ऐसी कोई कलम नहीं
हुस्न- ए-जान की तारीफ करना मुनकीन नहीं ।
।। नशीली आँखों से ना देखो ऐसे
शायर का दिल है पिघल जाएगा
ये जो बार बार कुछ बोलती हो ना
तो ये दिल सम्भल नहीं पाएगा
ये तुम्हारे जुल्फ हमेशा चेहरे पर आ जाते है ना
कोसिश तो करो सम्भल जाएगा
और जो तुम अभी भी नहीं रोकी मुस्कराना अपना
खुदा कसम मेरे जुबान से वो 3 शब्द निकल जाएगा
नशीली आँखों से ना देखो ऐसे
शायर का दिल है पिघल जाएगा।।
मासूमियत देख के उसके चेहरे की
ये दिल थम सा जाता है।
महसूस कर उसको अपने पास
मेरे रूह को सूकून मिल जाता है।
उसकी एक मुस्कराहत के खातिर ही
हम जैसा शख्स भी जोकर बन जाता है।
पापा को भी दर्द होता है।
घर बना कर भी
वो कहाँ चैन से सो पाते है।
अपने जिम्मेदारीयों को निभाने के खातिर
न जाने कितने खुशी के पल को खोते हैं।
हम दिवाली कि खुशियाँ मनाते हैं
पापा नौकरी से घर भी नहीं आ पाते हैं।
अपने हलातों पर
पापा को भी दर्द होता है।
अपनों के खातिर ही वो
अपनों से दूर होते हैं।
अपनों को न हो सके कोई कष्ट
इसलिए न जाने खुद कितने कष्ट को सहते हैं।
उनके गोद में सर रख कर
कहाँ कोई बच्चा रोता है।
पर उनके लिए तो उनका बच्चा ही सब कुछ होता है।
अरे भाई पापा को भी दर्द होता है।
ऐसा नहीं की
वो अपनों के साथ वक्त गुजारना नहीं चाहते हैं।
पर उन्हें समय कहाँ की अपनों से अपनी बात बतायें
उन्हें तो अपने बच्चों की भविष्य की चिंता सताती हैं।
बूढे़ बाप की दवा उन्हें समय पर पहूँचानी होती हैं।
वो रोते तो नहीं पर...
उनके चेहरे की झुरियाँ सब कुछ बयाँ कर जाती है।
फिर भी लोग पापा को क्यों समझ नहीं पाते हैं।
पापा को भी दर्द होता है
पापा को भी दर्द होता है।
26 जनवरी को आता हमारा गणतंत्र दिवस
जिसे मिलकर मनाते है हम सब हर वर्ष।
इसी विशेष दिन भारत बना था प्रजातन्त्र ।
इसके पहले तक हम लोग नहीं थे पूर्ण रूप से स्वतंत्र।
बाबा साहब,राजेन्र्द प्रसाद ने मिलकर के संविधान बनाया।
26 जनवरी 1950 को लागू करके देश का गौरव बढ़ाया।
गणतंत्र प्रप्ति से लोगों में उल्लास छाया।
मिला मौका लोगों को अपना नेता चुनने का।
जिससे बना देशभर में जनता की सरकार।
इसलिए दोस्तों तुम गणतंत्र का महत्व समझो।
चंद पैसो के ख़ातिर अपना मतदान ना बेचो।
क्योंकि यदि ना रहेगा हमारा यह गणतंत्र।
तो हमारा भारत देश फिर से हो जाएगा परतंत्र।
आओ हम सब मिलकर ले प्रतिज्ञा इस 72 वीं वर्षगांठ पर।
कभी ना करेंगे अपने संविधान की अवज्ञा।
कलम से लिख नहीं सकता कि
मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ।
तुम सपने में तो आती हो
मगर हर सपना हकीकत नहीं होता।
हमरी खव्यिश है कि मैं तुम्हें अपना दुनिया बना लूँ
मगर हर खव्यिश कभी पुरा नहीं होता।
डर जाता है हर बाप जब उसकी बेटी जवान होती है।
क्योंकि कोई नहीं जानता किस इंसान की नियत खराब होती है।
दरिंदों में बढ़ोतरी तो देखिये..पहले तो लड़कियों का हो रेप होता था
पर आज छोटी बच्ची भी ना बच पायी है।
क्योंकि कोई नहीं जानता किस इंसान की नियत खराब होती है।
कहने को तो बड़ी-बड़ी बातें होती है,कैंडिल मार्च होता है
बलत्कारीयों के खिलाफ आवाज भी उठाया जाता है
पर क्या इन जैसे दरिंदों के लिए केवल कानून का सजा ही काफी होता है।
कैंडिल मार्च से क्या होता एक को तो इन्साफ मिला जाता
पर फिर 2-4 महीनों के बाद यही कहानी सामने आ जाता है।
फिर किसी लड़की का इज्जत नीलाम होता है
पर न्यूज पर तो केवल धर्मों का बात होता है
लड़की हिन्दू थी या मुस्लिम,बलत्कारी मुस्लिम था या हिन्दू
बस यही समाचार के मुख्य खबरों का शान होता है।
अरे शर्म करो दरिंदों..
क्योंकि तुम जैसे चंद चूतियों के कारण ही मर्दों का कौम बदनाम होता है।
डर जाता है हर बाप जब उसकी बेटी जवान होती है।
क्योंकि कोई नहीं जानता किस इंसान की नियत खराब होती है।
तुम्हें देखा तो बस एक ही बार हूँ।
फिर भी कल्पनों के चादर में तुम्हारी मूरत बना लेता हूँ।
दिन को चैन नहीं मिलता..
और रातों की निंद तुम्हारी यादों में गुजार देता हूँ।
लगता है की तुमसे मोहब्बत होने लागा है।
अब तो कलम भी तुमसे मोहब्बत करने लगी है
मेरी कविताओं में भी तुम्हारी जिक्र करने लगी है।
अब सुनसान रातों में,मेरी बातें गहराई में उतरने लगी है
अब मेरे दिल की तन्हाई मोहब्बत मे बदलने लगी है।
लगता है की तुमसे मोहब्बत होने लगी है।
अब तो सूरज की रोशनी भी अधूरी लगती है
चाँद की सुंदरता भी बिखरी लगती है।
तुम्हारी आँखों में एकटक खो जाने का दिल करता है।
तुम्हें अपने खव्बों में बसाने का दिल करता है।
लगता है की तुमसे मोहब्बत होने लागा है।
तुमसे मिलने के लिए एक बेचैनी सी रहती है
मिलने पर तुम्हें अपने मोहब्बत का एहसास देनी है
तन्हाई कटने का नाम नहीं लेती है
एक प्यारी सी चुम्मन दे कर तुम्हें,तन्हाई को अब मात देनी है।
लगता है की तुमसे मोहब्बत होने लगी है।
उम्र लग जाती है नाम कमाने में,
पर समय नहीं लगता इज्ज़त गंवाने में ।।
पेट पर तो लात मारने बहुत मिलेंगे,
पर जो भूखे को खिला दे ऐसे बहुत कम है जमाने में।।
किसी को कहाँ फिकर किसी की,
सब तो लगे हैं रुपया कमाने में।।
ईष्या द्वेष से भरा परा है समाज अपना,
सब लगे हैं एक-दूसरे को नीचे दिखाने में ।।
कोई छेड़ रहा लड़की को,
तो कोई लगा उसे पटाने में।।
किसी का जो दिल टूटा,
तो वह परा है मधुशाला में।।
भूल कर अपने कर्तव्यों को,
परा है उस लड़की को भुलाने में।।
जाति-मजहब का पहन के चोला,
नेता लगे हैं एक-दूसरे को लड़ाने में।।
सरहद पर अनेकों वीर हो रहे हैं शहीद
पर नेता तो लगे है अपनी कुर्सी बचाने में।।
मैं कवि तो नहीं पर आज एक एहसास लिख रहा हूँ।
आज तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ।
जब हम पहली दफा मिले,तुम अलग सी लगी।
हम रोज मिलने लगे,फिर दूर हो गए
पर आज तुम्हें याद करके कुछ खास लिख रहा हूँ।
अजनबी से तुम पहचान बन गयी
पहचान बढ़ते-बढ़ते जान बन गयी।
मेरी जान तुमको पाने का आस लिख रहा हूँ।
आज तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ।
तुमसे बात करके मुझे यूँ सुकून सा मिलता है।
जैसे मानो की सागर को किनारा मिल गया।
तुम मुझसे कभी दूर नहीं होना,एक अरमान लिख रहा हूँ।
आज तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ।
मुझे हिम्मत नहीं होती तुमसे कुछ कहने का
इसीलिए इस कविता के माध्यम से तुम्हें जान लिख रहा हूँ।
आज तुम्हारे लिए कुछ खास लिख रहा हूँ।
उल्लूओं को रात में रोते हुए देखा है
दुनिया को खामोशी से सोते हुए देखा है।
भूखे पेट नन्हें बच्चों को काम करते हुए देखा है...
जायदाद के लिए बेटों को बाप से लड़ते हुए देखा है।
उल्लूओं को रात में...............
दुनिया को खामोशी से............
थोड़े पैसों की गर्मी के कारण इंसान को बदलते हुए देखा है।
खाली पेट अपने बच्चों को सुलाते बेवश माँ को देखा है।
उल्लूओं को रात में...............
दुनिया को खामोशी से............
कर्ज से डूबे किसान को जहर खाते हुए देखा है।
कर्ज लेकर अमिरों को विदेश में जाते हुए देखा है।
उल्लूओं को रात में...............
दुनिया को खामोशी से...........
मोटे तौर पर दहेज लेते हुए बाप को देखा है ।
अपनी पगड़ी किसी के पैरों के नीचे रखते हुए बाप को देखा है।
उल्लूओं को रात में रोते हुए देखा है।
दुनिया को खामोशी से सोते हुए देखा है।
यूं गर्दिश में मुझे देख कर मुस्कराना मत...
मैं कहता हूँ कि तुम कभी दिल लगाना मत।
मैं टूटा हुआ हूँ बिखरना चाहता हूँ अब
तुम तरस खाकर मुझे समिटने आना मत
अब कोई लैला मनंजनु की कहानी सुनाना मत
फिर इस तरह किसी को रुलना मत
नापसंद को अपना पसंद बनाना मत
पर यूं जिंदगी भर का वादा करके मुकर जाना मत..
हाँ मैं मानता हूं कि तुम्हें बच्चपन में खिलौने की कमी रही होगी।
पर अब यूं किसी दिवाने को अपना खिलौना बनाना मत
यकीनन तुम कभी वापस आना मत...
फिर किसी दिवाने का दिल दुखाना मत।
ये समय इतना जल्दी क्यों बीत जाता है।
वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है।
वक्त के साथ हर मौका हाथ निकल जाता है।
तुम सोचते हो तुम्हारे बिना हम जी नहीं सकते।
जनाब ये वक्त हमें जीना भी सीखा देता है।
दुनिया का दस्तूर भी यहीं है जो चला गया उसके लिए रोना क्या।
भूल कर अपने पुराने वक्त को जिंदगी नए सिरे से शुरू करो।
क्योंकि दोस्तों... वक्त के साथ सब कुछ बदल जाता है।
शाम होते ही सूरज ढ़ल जाता है,सुबह नए किरणों के साथ वापस आता है।
भगत सिंह ने इंकलाब का नारा देकर
सबमें स्वतंत्रता का बिगुल बजाया था।
देखकर तुम्हारी देशभक्ति को,सबने अश्रु बहाया था।
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
तुम छोड़ गए इस दुनिया को,दिखाकर आजादी का सपना।
सपना यकीनन सच हुआ
पर हमने खो दिया बहुत कुछ अपना
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
आजादी के बाद,सबने तुम्हारे सपनों को तोड़ा था।
हिन्दू-मुस्लिम के चक्कर में आकर
सबने एक-दूसरे को मारा था।
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
कुछ को हिन्दुस्तान मिला
कुछ ने पाकिस्तान को बनाया था।
सपना को तोड़ तुम्हारे सबने जातिवाद अपनाया था।
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
गांधी,नेहरु,जिन्ना ने भारत को बांटा था
अपनी राजनीति के लिए इन्होंने
भारत की अखंडता को दाँव पर लगाया था।
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
सरहद के इस बंटवारे के कारण
पाक-हिन्द सीमा पर खड़े सिपाही ने
अपना जान गवायाँ था
देशहित के खातीर तुमने
हंसते-हंसते फांसी को गले लगाया था।
कुछ घटिया लोग हमें जाति,धर्म के नाम पर लड़ा रहे है
और उस दंगे,लडा़ई में हम नेताओं से रुपया लेकर जा रहे हैं।
हम तो लडा़ई कर रहे हैं नेता अपना काम निकाल रहे है।
हम धर्म-धर्म कह कर लोगो को मार रहे हैं।
असान नहीं है मोहब्बत यहाँ "जानेमन"
जाति,धर्म के नाम पर यहाँ मोहब्बत को दबाया जाता है।
प्यार करने से क्या होगा...
जब प्यार को निभाना ही नहीं जाता है।
वो स्कूल का समय जिसमें....
मैं तुमको हँसाया करता था....
वो पहली बार फेसबुक पर रिक्वेस्ट भेजना....
तुमसे बात करने की मेरे तड़पन को कभी भुलाना मत....
कभी यूँही अचानक मैं....
सामने आ जाऊँ भी तो....
मुझे अनदेखा करके....
चले जाना मत....
तुम्हारी खुशी में....
मेरी खुशी है....
मुझे भुल कर....
अपने सपनों में खो जाना तुम....
मैं मरूँगा नहीं....
जीता रहूंगा तुम्हें याद करके....
तुम मुझे मिली तो नहीं....
बस छोटी सी गुजारीश है तुमसे....
जब भी मेरा नाम तुमको याद आए तो....
बस हँस कर हमको याद करना तुम....
लिखा जो खुदा ने, उसे बदलने की ताकत नहीं
कैसे कह दूँ कि, मुझे तुमसे मोहब्बत नहीं।
खफा होकर चली गयी तो क्या हुआ...
पर न जाने अब तुम्हारे जाने का शिकायत नहीं।
मासूम सा वो बच्चपन कहा गए
खेलने के उम्र में,काम पर चल दिए
बस पेट के ख़ातिर,खुद ब खुद बड़े हो गए
ने झेले उसने किताबों के बोझ को
काट दिया अपनी बच्चपन फूट पाथ और रोड पर
लोगों ने इनकी भूख का फायदा उठाया
नन्ही सी उम्र में ही उनसे काम करवाया।
रूह तो सबके पास है,
मगर कपड़ों के बिना कोई नंगा नहीं होता
हाँ माना ऐ दुनिया मतलबी है,
मगर हर शख्स दरिंदा नहीं होता
हर किसी का इतिहास नहीं जानते तुम,
हर आँख झुकने वाला शख्स शरमिंदा नहीं होता
महज कहानी के हिस्से हो तुम,किरदार नहीं
और हर बुरा दिखने वाला शख्स,
दिल से गंदा नहीं होता
यहाँ सभी इसी चोचले में है,
की हर मुस्कराता शख्स खुश हैं
मगर हर मुस्कराता शख्स याँहा जिंदा नहीं होता
महज दिखावे का दुनिया है यह,
यहाँ हर अपना कहने वाला शख्स अपना नहीं होता
भाई यह कलयुग हैं यहाँ दो अच्छे काम कर देने से,
कोई भगवान नहीं बन पाता ।
गुजरात के नन्हें से गाँव का जन्मा वह बच्चा
चाय बेच अपनी बच्चपन को काटा।
मोदी-मोदी कह कर लोगों ने उसे पालियामेन्ट में बैठाया।
चीन, जपान,अमेरिका को भारत के आगे उसने झुकाया।
पाकिस्तान के आतंकी को उसने धूल चटाया।
धारा 370 को खत्म कर जम्मू-काश्मीर में शांति लाए।
राम मंदिर का शिलान्यास कर, वर्षो का सपना सकार कराया।
भारत में शान्ति,स्वच्छता को लाना उनकी अभिलाषा है।
अनैतिकता,भष्र्टाचार को धूमिल कर
भारत को फिर विश्वगुरू बनाना है।
प्रधानमंत्री के पद पर रहकर,भारत का गौरव बढ़ाना है।
उसकी सोच समझ पर कई नेताओं ने सवाल उठाया
पर उसने अपने को साबित कर,संघ का लाज बचाया।
जिस पल भी उसका ख्याल आया करता है....
तब मेरा दिल एक सवाल मुझसे सवाल करता है...
तूने उसे दिमाग से तो निकाल दिया.....
क्या दिल से निकाल पाए.....
क्या तुम अपने अस्कों को रात को रोक पाए...
क्या अपने जजबात को उसके प्रति रोक पाए...
क्या अभी भी उससे मिलने की ख्वाएस को भूल पाए...
क्या उसकी बातों को याद कर अपनी हँसी को रोक पाए..
तूने उसे दिमाग से तो निकाल दिया....
क्या दिल से निकाल पाए...।
कोई नहीं हैं अपना-पराया मुश्किल में दोनों ही साथ छोड़ जाते हैं।
जीवन की मुश्किल घड़ीयों में इन्हें बस हँसना आता है।
रोता तो इंसान अकेले ही है,अपने-पराए तो बस खुशीयाँ बाँटने आता है।
अच्छे वक्त में रिश्ते बनाते हैं,बुरे समय में नजरे चुराते है।
साथ होने का दिखावा कर सभी पीठ-पीछे हमारी हँसी उड़ाते हैं।
अधूरे सफर की यादें रूलाती तो बहुत हैं।
पर अब मुझे अपने दिल से बगावत करने की आदत नहीं है।
हमारे दिल के ख्वाबों को दफन कर रही हो तो
एक वादा करोगी मुझसे....कहो की तुम मुझे अपने
सपनों में नहीं रखोगी, मेरे मरने के बाद मेरे कब्र
पर मन्नते नहीं करेगी,
अपने बच्चों का नाम मेरे नाम पर नहीं
रखोगी।
जिसको तुम अपना मानती हो
साथ में जिंदगी बिताना चाहती हो।
जिसके लिए तुम सब कुछ छोड़ आयी हो
जिंदगी से रिश्ता तोड़ आयी हो
वह जब किसी और की बाहों में होगा।
"जानेमन" तुम्हें भी दर्द का एहसास होगा
जब तुम्हें भी किसी से प्यार होगा।
धुए की तरह कटती जिंदगी में,
मेरा यार है,तु सिगरेट
इस बेकार जिंदगी में
मेरा साथी है,तु सिगरेट
कहने को तु एक नसा है
पर मेरे गम का साथी है, तु सिगरेट।
शादी का जब रश्म हुआ पुरा,आया वक्त विदाई का
बेटी के उस दबी स्वर ने,पिता को झकझोर दिया
पूछ रही थी पापा मुझे सचमुच में क्या छोड़ दिया।
अब आपके आँगन में मेरा कोई स्थान नहीं
अब मेरे किसी दुःख का आपको बिलकुल ध्यान नहीं ।
अन्तिम बार घर घुमाके, कुल देवता पुजवाते हैं
क्यों पापा अब आप उन्हें क्यों नहीं डराते है।
भूल गए हैं चाचा-चाची भाई भी न हमसे मिलने आता है
एसी भी क्या निष्ठुरता है,जो किसी को हम याद नहीं आते हैं।
सुन के एसी बात बेटी का,रहा न गया पिता से दूर खड़ा।
गिर पड़े आँखों से आँसू,लिपट कर रोया खूब पिता ।
लगी रोने माँ जैसे बच्चे से कोई कुछ छीन चला
घर की फुलवाड़ी से, माली सब फूल तोड़ चला।
बेटी के जाने से घर ने न जाने क्या-क्या खोया है।
कभी ना रोने वाला बाप फूट-फूट के रोया है।
बार बार तेरी प्रोफ़ाइल को देखना भी तो प्यार है,
चुपके चुपके तेरी तस्वीर को देखना भी तो प्यार है,
इनबँक्श में मैसेज आया की नहीं जानने की बेकरारी भी तो प्यार है,
दूर होकर भी तुमको पास पाने का अहसास भी तो प्यार है,
तुम हमको नही मिलेगी जानते हुए भी,तमको शिद्दत से चाहना भी तो प्यार है।
💙💕💙
वो शाम को निकलना,रात को घर आना
कबड्डी खेलना,धूल लगाना
मम्मी से मार खाना,पापा का समझाना
दादी से कहानी सुनना,दादा का हाँथ बटाना
छोटी सी बातों पर,धूल को ही बिस्तर बनाना
वो खाने के लिए झगड़ना,नहाने से इतराना
ये बच्चपन की यादें बडा़ अजीब है,
उन बातों का याद आना भी खुशनसीबी है।
हर कागज के टुकड़े के पीछे कोई ना कोई इतिहास होता है
भले ही कुछ कहानी के पन्ने होते हैं
मगर कुछ टुकड़े हमारे जुदाई का एहसास होता है
कई मासूकों का जान होता है यह टुकड़ा
हम जैसे लोगों के जिंदगी का अरमान होता है यह कागज का टुकड़ा
किसी के परीक्षा का परिणाम होता है
तो किसी के आप बीती का हिसाब होता हैं यह टुकड़ा
इसी कागज के टुकड़े के लिए हम दिन-रात एक करते है
बिना इस टुकड़े के याहाँ जीना मुश्किल है
क्योंकि रूपया भी महज एक कागज का टुकड़ा है।
आँखों में वो खव्वाब लिए ,
वो खव्वाब सभी को दिखा गयी
1857 में एक नारी सबको जगा गयी।
बादल पर सवार हुए, पिठ पर शिशु बांध लिए
दोनों हाथ तलवार लिए, गोरों के बीच जा खड़ी हुई।
देख रानी के वार को डलहौजी स्तम्भ हुआ
एक नारी के आत्मविश्वास के आगे, उसका सपना चूर हुआ।
जब पूरा भारत डरता था, अंग्रेजी सरकारों से
वो आँख मिलाकर कहती थी, उन सारे गद्दारों से
मरना है तो मरो लड़कर, यूँ आत्मसमर्पण क्या करना
वो भारत के सोये नागरिकों में स्वाभिमान जगाने आई थी।
वो मर्दानी, वो नारी, वो रानी लक्ष्मीबाई थी।
आज तुम्हें मेरी हर बात नदानी लगती है
मेरी मोहब्बत तुम्हें फिल्मी कहानी लगती है
जब जुदाई में किसी से मिलने को तरसने लगोगे
उससे बाते करने को तड़पने लगोगे
"जानेमन" तब तुम्हें भी दर्द का एहसास होगा
जब तुम्हें भी किसी से प्यार होगा।
❤️❤️
लहरों से टकराना है,मुश्किलों को हराना है।
हर हाल में बस आगे ही बढ़ते जाना है।
नहीं चिंता मुझे की राहों में कांटे बिछे है या फूल...
बस अपने मंजिल तक पहुँच जाना है।
अपने मेहनत को दुगुना कर,अपने लक्ष्य को पाना है।
भूल कर अपनी कमियों को, जिंदगी को आगे बढ़ाना है।
दुनिया की फिकर छोड़कर,अपने सपने के पीछे बढ़ते जाना है।
लहरों से टकराना है,मुश्किलों को हराना है।
हर हाल में बस आगे ही बढ़ते जाना है।
फासला इतनी बढ़ गयी की
ना तुम हमशे मिलते थे,नाही मैं मिलने का कोशिश करता।
बाते तो होती थी पर अब बातों में अपनापन नहीं रहता...
पहले की तरह तुम मुस्करा हाल नहीं पुछती...
नही मैं खुश होकर जवाब दे पाता।
अगर दूरिया बातों की होती तो कब की मिट गयी होती
मगर यह दूरिया तो दिलो दिमाग की थी जो मिटने का नाम ही नहीं लेती।
अग्नि की ताप से, परिवार की भार से
जिम्मेदारीयों को सर लिए, मैं मर्द बनता हूँ।
उम्र से पहले जिम्मेदारी को लेकर,सभी की खव्वासि को पूरा कर,मैं मर्द बनता हूँ।
कभी आंसू बहा कर रो नहीं सकता...अगर ऐसा किया तो मैं मर्द नहीं बन सकता।
बाप का सहारा बनकर,माँ का दुलारा बनकर
बहन का रखवाला बनकर, भाई का यार बनकर
और यारों का यार बनकर, मैं मर्द बनता हूँ।
अपना दिये देकर दूसरों के घर में उजाला करता हूँ
अपनी बेटी का कन्यादान करके,दूसरे की बेटी को अपना अंग बनाता हूँ
बाप,भाई,बेटा,यार मैं लाखों किरदार बनता हूँ, ऐसे ही तो मैं मर्द बनता हूँ।
मैं हमेशा तुमसे मिलने की जिद करता
"जानेमन" मैं तुमसे सच्चा इश्क़ करता
मुझे भूख नहीं थी तेरी जिस्म की
मैं तो बस तुम्हें खोने से डरता था।
😘❤️❤️😘
तुमसे मिलने की ख़ातिर अक्सर मैं कलाई में घड़ी बांध लेता हूँ पर...
"जानेमन" फिर भी लेट से मिलने पहुँचता हूँ।
❤️💚❤️
आज प्राकृति ने कैसा कोहराम मचाया है।
इंसान को कितना मजबूर बनाया है।
चांद,मंगल पर जाने वालों को....
उनके घर में ही बंदी बनाया है।
खुद को को परिपूर्ण कहने वाले प्राणी को
कोरोना ने क्या मजा चखाया है।
मार रहा मनुष्यों को कीड़े-मकोड़ो की तरह
पर मनुष्य उसका कुछ कर नहीं पा रहा है।
आज प्राकृति ने कैसा कोहराम मचाया है।
इंसान को कितना मजबूर बनाया है।
इस कोरोना के कारण,धरती ने खुशहाली मनायी
पर्यावरण में नई उमंग भर आयी।
नदियाँ झिलमिलाती नजर आयी।
शुध्द हवा ने प्रदूषित पर्यावरण को मुक्ति दिलाई।
आज प्राकृति ने कैसा कोहराम मचाया है।
इंसान को कितना मजबूर बनाया है।
पर्यावरण ने कोरोना के माध्यम से हमें चेताया है।
सुधर जा मानव नहीं तो इससे बड़ा प्रलय आने वाला है।
वृक्ष लगा,जीव-जन्तुओं को कदापि अपना भोजन ना बना।
घर में रहकर इस कोरोना जैसे महामारी को दूर भागा।
सेनेंटाईजर से हाथ धो-धोकर अपनी जान बचा।
दोस्त,प्यार और नौकरी की तलाश जारी है।
पर मुझे क्या पता की मेरे नसीब में इनकी कमी है।
मैं भटकता दोस्तों के खातीर
प्यार की चाहत में, मैं हर एक को अपने करीब रखता
असफलता एक चुनौती है... मान कर मैं नौकरी के पीछे पड़ता।
पर ये तीन चीज कभी वक्त से पहले नहीं मिलता।
तुम मुझे छोड़कर जा रही हो
'जानेमन! ये बात हंसकर बता रही हो
तुम्हें मेरे दर्द का अंदाज़ा नहीं है
मेरे सामने दूसरे को गले लगा रही हो।
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सावन माह की पूर्णिमा तिथि का, सब बहनों को इंतजार रहता
पूरी दुनिया इस दिन को रक्षाबंधन का त्यौहार कहता।
इस दिन भाई के माथे पर तिलक शोभा बढ़ाती..
कलाई की राखी मन में विश्वास जगाती हैं।
भाई मेरे तुम खुश रहना सदा, यहीं प्रथाना करती बहन
बाध के रक्षासुत्र का धागा,अपनी रक्षा का दायित्व देती।
लड़ना,झगड़ना और मना लेना यही है भाई-बहन का प्यार
इसी प्यार को बढ़ाने आता है,रक्षाबंधन का त्यौहार।
हम दोस्त हर दुःख सुख में साथ जीया करते थे।
हार हो या जीत हमेशा एक दूसरे का साथ दिया करते थे।
कभी हम तुमको गाली देते थे तो कभी तुम दिया करते थे।
कभी हम रुठते, तो कभी तुम रुठा करते थे।
पर मनाने का सिलसिला हमेशा जारी रखा करते थे।
शर्दी हो या गर्मी एक साथ लड़की का पीछा करते थे।
भाई ये तुम्हारे लिए सही है, तुम्हीं पटा लो ऐसा बात किया करते थे।
क्लास में टिफिन चुरा कर खाया करते थे।
lunch time में एक दूसरे की टिफिन को छीन कर खाया करते थे।
Teacher के मार के बाद अपने दोस्तों का मजाक उड़ाया करते थे।
हम अपनी दोस्ती पर कितना इतराया करते थे।
मरी तो मैं कई बार, एक बार नहीं सौ बार
कभी मारा मुझे समाज ने, तो कभी मारा समाज के खोखले रिति-रिवाज ने
कभी मरी माँ के कोख में तो, कभी मरी मैं दहेज के कारण
बनी शिकार किसी के हवश की, तो मैं मरी निर्भया बन कर ।
कभी जली मैं सत्ती प्रथा के कारण, तो कभी अग्नि परीक्षा देकर।
नन्हीं सी उम्र में अपने सपनों को छोड़कर
पहन ली साड़ी, कंगन,पायल बन गयी किसी के घर की नौकर
क्या यह मृत्यु से कम है क्या।
मौत आयी मेरी सपनों को, मौत आयी मेरी पहचान को भी
मौत आयी मेरी मुस्कान को, मौत आयी मेरी उड़ान को भी
मौत हर समय आती रही और मैं मरती रही।
इस मौत से तंग आकर,
मैनें भी पूछ लिया की तू हर बार मुझे ही क्यूँ मारती हैं
मौत भी यह बोल कर चली गई की लड़की है तू, लड़की है तू।